फूलों से नाज़ुक बचपन, यौवन चंचलता से भरपूर।
अटखेलियाँ करती, चहकती और नख़रे दिखाती तुम।।
माँ बाप की नन्ही सी परी से बेटी, बेटी से बहु।
बहु से जुड़े सेंकडो नये तार, हर तार को सुलझाती तुम।।
पत्नी, माँ, मित्र बन जाती, कभी मार्गदर्शक हो जाती हो।
हर नित नए दिन कितने अलग अलग किरदार निभाती तुम।।
प्रकृति को जन्म देती, भगवान होने का एहसास कराती हो।
नये वंश को आगे बढ़ाती, घोंसले का हर तीनका सजाती तुम।।
घर, समाज, व्यापार, खेलों, राजनीति में क़दम मिलाती हो।
कभी प्रेरणा का स्त्रोत और कभी ख़ुद प्रेरणा बन जाती तुम।।