जब तक हम अपने मन को प्रकाशमान नहीं करेंगे, हम भगवान राम को अपने अंदर महसूस नहीं कर सकते है। आज पूजा, पाठ, भक्ति सिर्फ़ एक मनोरंजन का ज़रिया बनते जा रहें है और समाज में सिर्फ़ आडंबर और दिखावे को बढ़ावा मिल रहा है। पूरी दुनिया में आज कलियुग अपने चरम सीमा पर है और शायद अपने वीभत्स रूप में आज समाज के सामने खड़ा है।
आज ज़रूरत है की हम अपने अंदर रावण रूपी तामसिक बुराइयाँ जैसे आलस्य, लापरवाही, द्वेष, धोखाधड़ी, असंवेदनशीलता, आलोचना और गलती ढूंढना, कुंठा, लक्ष्यहीन जीवन, तार्किक सोच की कमी और हिंसात्मक प्रवृति के ऊपर दशहरा के दिन विजय प्राप्त करें और अपने जीवन में प्रसन्नता, संतुष्टि, धैर्य, क्षमा करने की क्षमता, अध्यात्म के प्रति झुकाव इत्यादि को अपना कर अपने और समाज को स्थिर, शांत और प्रगतिशील बनाने की तरफ़ अग्रसर हों।
दशहरा की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ।।